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दूसरों के साथ यीशु के बारे में साझा करना

बीते हुए हफ्ते को याद करें
  1. इस सप्ताह के लिए आप किस चीज़ के लिए आभारी हैं?
  2. आप किस समस्या के साथ जूंझ रहे हो? हम आपकी किस प्रकार मदद कर सकते हैं?
  3. आपने हमारे पाठशाला/ समुदाय में कौनसी ज़रूरतों को देखा

इन जरूरतों के बारे में हम प्रार्थना कर सकते हैं

  1. आपने पिछले हफ्ते से सबक कैसे लागू किया?
  2. आपने कहानी किसके साथ साझा की, और उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अवलोकन

महत्वपूर्ण सवाल: यदि यीशु के साथ हमारा रिश्ता, सुसमाचार है, तो हम इस खुशखबरी के बारे में दूसरों को कैसे बता सकते हैं?

बयान: जो कोई भी यीशु का सामना करता है वह दूसरों के साथ अपने अनुभव के बारे में साझा कर सकता है, ताकि वे भी यीशु को सामना कर सकें। जैसा कि आप हमारे पहले सप्ताह में अपनी गवाही को विकसित करने में सक्षम थे, आज हम यह सुनेंगे कि एक अन्य व्यक्ति को न सिर्फ एक व्यक्ति पर बल्कि पूरे शहर पर भी गवाही का इस्तेमाल किया गया था!

यूहन्ना 4 :1-2

जब यीशु को पता चला कि फरीसियों ने सुना है कि यीशु यूहन्ना से अधिक लोगों को बपतिस्मा दे रहा है और उन्हें शिष्य बना रहा है। 2(यद्यपि यीशु स्वयं बपतिस्मा नहीं दे रहा था बल्कि यह उसके शिष्य कर रहे थे।) 3तो वह यहूदिया को छोड़कर एक बार फिर वापस गलील चला गया। 4इस बार उसे सामरिया होकर जाना पड़ा।

5इसलिये वह सामरिया के एक नगर सूखार में आया। यह नगर उस भूमि के पास था जिसे याकूब ने अपने बेटे यूसुफ को दिया था। 6वहाँ याकूब का कुआँ था। यीशु इस यात्रा में बहुत थक गया था इसलिये वह कुएँ के पास बैठ गया। समय लगभग दोपहर का था। 7एक सामरी स्त्री जल भरने आई। यीशु ने उससे कहा, “मुझे जल दे।” 8शिष्य लोग भोजन खरीदने के लिए नगर में गये हुए थे।

9सामरी स्त्री ने उससे कहा, “तू यहूदी होकर भी मुझसे पीने के लिए जल क्यों माँग रहा है, मैं तो एक सामरी स्त्री हूँ!” (यहूदी तो सामरियों से कोई सम्बन्ध नहीं रखते।)

10उत्तर में यीशु ने उससे कहा, “यदि तू केवल इतना जानती कि परमेश्वर ने क्या दिया है और वह कौन है जो तुझसे कह रहा है, ‘मुझे जल दे’ तो तू उससे माँगती और वह तुझे स्वच्छ जीवन-जल प्रदान करता।”

11स्त्री ने उससे कहा, “हे महाशय, तेरे पास तो कोई बर्तन तक नहीं है और कुआँ बहुत गहरा है फिर तेरे पास जीवन-जल कैसे हो सकता है? निश्चय तू हमारे पूर्वज याकूब से बड़ा है! 12जिसने हमें यह कुआँ दिया और अपने बच्चों और मवेशियों के साथ खुद इसका जल पिया था।”

13उत्तर में यीशु ने उससे कहा, “हर एक जो इस कुआँ का पानी पीता है, उसे फिर प्यास लगेगी। 14किन्तु वह जो उस जल को पियेगा, जिसे मैं दूँगा, फिर कभी प्यासा नहीं रहेगा। बल्कि मेरा दिया हुआ जल उसके अन्तर में एक पानी के झरने का रूप ले लेगा जो उमड़-घुमड़ कर उसे अनन्त जीवन प्रदान करेगा।”

15तब उस स्त्री ने उससे कहा, “हे महाशय, मुझे वह जल प्रदान कर ताकि मैं फिर कभी प्यासी न रहूँ और मुझे यहाँ पानी खेंचने न आना पड़े।”

16इस पर यीशु ने उससे कहा, “जाओ अपने पति को बुलाकर यहाँ ले आओ।”

17उत्तर में स्त्री ने कहा, “मेरा कोई पति नहीं है।”

यीशु ने उससे कहा, “जब तुम यह कहती हो कि तुम्हारा कोई पति नहीं है तो तुम ठीक कहती हो। 18तुम्हारे पाँच पति थे और तुम अब जिस पुरुष के साथ रहती हो वह भी तुम्हारा पति नहीं है इसलिये तुमने जो कहा है सच कहा है।”

19इस पर स्त्री ने उससे कहा, “महाशय, मुझे तो लगता है कि तू नबी है। 20हमारे पूर्वजों ने इस पर्वत पर आराधना की है पर तू कहता है कि यरूशलेम ही आराधना की जगह है।”

21यीशु ने उससे कहा, “हे स्त्री, मेरा विश्वास कर कि समय आ रहा है जब तुम परम पिता की आराधना न इस पर्वत पर करोगे और न यरूशलेम में। 22तुम सामरी लोग उसे नहीं जानते जिसकी आराधना करते हो। पर हम यहूदी उसे जानते हैं जिसकी आराधना करते हैं। क्योंकि उद्धार यहूदियों में से ही है। 23पर समय आ रहा है और आ ही गया है जब सच्चे उपासक पिता की आराधना आत्मा और सच्चाई में करेंगे। परम पिता ऐसा ही उपासक चाहता है। 24परमेश्वर आत्मा है और इसीलिए जो उसकी आराधना करें उन्हें आत्मा और सच्चाई में ही उसकी आराधना करनी होगी।”

25फिर स्त्री ने उससे कहा, “मैं जानती हूँ कि मसीह (यानी “ख्रीष्ट”) आने वाला है। जब वह आयेगा तो हमें सब कुछ बताएगा।”

26यीशु ने उससे कहा, “मैं जो तुझसे बात कर रहा हूँ, वही हूँ।”

27तभी उसके शिष्य वहाँ लौट आये। और उन्हें यह देखकर सचमुच बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह एक स्त्री से बातचीत कर रहा है। पर किसी ने भी उससे कुछ कहा नहीं, “तुझे इस स्त्री से क्या लेना है या तू इससे बातें क्यों कर रहा है?”

28वह स्त्री अपने पानी भरने के घड़े को वहीं छोड़कर नगर में वापस चली गयी और लोगों से बोली, 29“आओ और देखो, एक ऐसा पुरुष है जिसने, मैंने जो कुछ किया है, वह सब कुछ मुझे बता दिया। क्या तुम नहीं सोचते कि वह मसीह हो सकता है?” 30इस पर लोग नगर छोड़कर यीशु के पास जा पहुँचे।

31इसी समय यीशु के शिष्य उससे विनती कर रहे थे, “हे रब्बी, कुछ खा ले।”

32पर यीशु ने उनसे कहा, “मेरे पास खाने के लिए ऐसा भोजन है जिसके बारे में तुम कुछ भी नहीं जानते।”

33इस पर उसके शिष्य आपस में एक दूसरे से पूछने लगे, “क्या कोई उसके खाने के लिए कुछ लाया होगा?”

34यीशु ने उनसे कहा, “मेरा भोजन उसकी इच्छा को पूरा करना है जिसने मुझे भेजा है। और उस काम को पूरा करना है जो मुझे सौंपा गया है। 35तुम अक्सर कहते हो, ‘चार महीने और हैं तब फ़सल आयेगी।’ देखो, मैं तुम्हें बताता हूँ अपनी आँखें खोलो और खेतों की तरफ़ देखो वे कटने के लिए तैयार हो चुके हैं। वह जो कटाई कर रहा है, अपनी मज़दूरी पा रहा है। 36और अनन्त जीवन के लिये फसल इकट्ठी कर रहा है। ताकि फ़सल बोने वाला और काटने वाला दोनों ही साथ-साथ आनन्दित हो सकें। 37यह कथन वास्तव में सच है: ‘एक व्यक्ति बोता है और दूसरा व्यक्ति काटता है।’ 38मैंने तुम्हें उस फ़सल को काटने भेजा है जिस पर तुम्हारी मेहनत नहीं लगी है। जिस पर दूसरों ने मेहनत की है और उनकी मेहनत का फल तुम्हें मिला है।”

39उस नगर के बहुत से सामरियों ने यीशु में विश्वास किया क्योंकि उस स्त्री के उस शब्दों को उन्होंने साक्षी माना था, “मैंने जब कभी जो कुछ किया उसने मुझे उसके बारे में सब कुछ बता दिया।” 40जब सामरी उसके पास आये तो उन्होंने उससे उनके साथ ठहरने के लिए विनती की। इस पर वह दो दिन के लिए वहाँ ठहरा। 41और उसके वचन से प्रभावित होकर बहुत से और लोग भी उसके विश्वासी हो गये।

42उन्होंने उस स्त्री से कहा, “अब हम केवल तुम्हारी साक्षी के कारण ही विश्वास नहीं रखते बल्कि अब हमने स्वयं उसे सुना है। और अब हम यह जान गये हैं कि वास्तव में यही वह व्यक्ति है जो जगत का उद्धारकर्ता है।”



  1. क्या आपको इस खंड में कोई बात महत्वपूर्ण लगा?
  2. क्या आपको इस खंड में कोई बात महत्वपूर्ण लगा?
  3. आज का अध्याय परमेश्वर के बारे में हमें क्या बताता है? लोगों के बारे में? परमेश्वर के साथ हमारा जो रिश्ता है, उसके बारे में क्या बताता है?

निष्कर्ष:

आप यह कैसे सोचते हैं कि यह प्रश्न उस प्रश्न से जुड़ा है, जो हमने पहले चर्चा किया था"हम कैसे यीशु के बारे में दूसरों को बताने करते हैं?"

आगे देखो

सबसे महत्वपूर्ण बात यह होगी कि हम जो सीखते हैं उसे कैसे लागू करते हैं, ताकी हम एक-दूसरे की सहायता करने कि मार्ग डूँड सकते हैं. कुछ प्रश्न जो हमारी मदद कर सकते हैं :

  1. आप किस प्रकार जीते हो किस प्रकार जीने वाले हो? परमेश्वर में, अपने आप के साथ और दूसरों के साथ?
  2. इस हफ्ते की चर्चा से वह क्या एक चीज़ है जो आप अपने जीवन में लागू करोगे? आप उस बदलाव को लाने के लिए क्या करेंगे?
  3. इस हफ्ते आपने जो कुछ सीखा है उसे आप किसके साथ साझा करेंगे? आप क्या साझा करेंगे?

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