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परमेश्वर के प्यार और क्षमा का अनुभव

बीते हुए हफ्ते को याद करें
  1. इस सप्ताह के लिए आप किस चीज़ के लिए आभारी हैं?
  2. आप किस समस्या के साथ जूंझ रहे हो? हम आपकी किस प्रकार मदद कर सकते हैं?
  3. आपने हमारे पाठशाला/ समुदाय में कौनसी ज़रूरतों को देखा

इन जरूरतों के बारे में हम प्रार्थना कर सकते हैं

  1. आपने पिछले हफ्ते से सबक कैसे लागू किया?
  2. आपने कहानी किसके साथ साझा की, और उनकी प्रतिक्रिया क्या थी?
अवलोकन

महत्वपूर्ण सवाल: हम लगातार परमेश्वर के साथ घनिष्ठ संबंध कैसे प्राप्त कर सकते हैं?

बयान: पाप परमेश्वर के साथ हमारे सहभागिता (या निकटता) को प्रभावित करता है, लेकिन हमारा रिश्ता सुरक्षित रहता है

लूका 15: 11-24

 11फिर यीशु ने कहा: “एक व्यक्ति के दो बेटे थे। 12सो छोटे ने अपने पिता से कहा, ‘जो सम्पत्ति मेरे बाँटे में आती है, उसे मुझे दे दे।’ तो पिता ने उन दोनों को अपना धन बाँट दिया।

13“अभी कोई अधिक समय नहीं बीता था, कि छोटे बेटे ने अपनी समूची सम्पत्ति समेंटी और किसी दूर देश को चल पड़ा। और वहाँ जँगलियों सा उद्दण्ड जीवन जीते हुए उसने अपना सारा धन बर्बाद कर डाला। 14जब उसका सारा धन समाप्त हो चुका था तभी उस देश में सभी ओर व्यापक भयानक अकाल पड़ा। सो वह अभाव में रहने लगा। 15इसलिये वह उस देश के किसी व्यक्ति के यहाँ जाकर मज़दूरी करने लगा उसने उसे अपने खेतों में सुअर चराने भेज दिया। 16वहाँ उसने सोचा कि उसे वे फलियाँ ही पेट भरने को मिल जायें जिन्हें सुअर खाते थे। पर किसी ने उसे एक फली तक नहीं दी।

17“फिर जब उसके होश ठिकाने आये तो वह बोला, ‘मेरे पिता के पास कितने ही ऐसे मज़दूर हैं जिनके पास खाने के बाद भी बचा रहता है, और मैं यहाँ भूखों मर रहा हूँ। 18सो मैं यहाँ से उठकर अपने पिता के पास जाऊँगा और उससे कहूँगा: पिताजी, मैंने स्वर्ग के परमेश्वर और तेरे विरुद्ध पाप किया है। 19अब आगे मैं तेरा बेटा कहलाने योग्य नहीं रहा हूँ। मुझे अपना एक मज़दूर समझकर रख ले।’ 20सो वह उठकर अपने पिता के पास चल दिया।

छोटे पुत्र का लौटना

“अभी वह पर्याप्त दूरी पर ही था कि उसके पिता ने उसे देख लिया और उसके पिता को उस पर बहुत दया आयी। सो दौड़ कर उसने उसे अपनी बाहों में समेट लिया और चूमा। 21पुत्र ने पिता से कहा, ‘पिताजी, मैंने तुम्हारी दृष्टि में और स्वर्ग के विरुद्ध पाप किया है, मैं अब और अधिक तुम्हारा पुत्र कहलाने योग्य नहीं हूँ।’

22“किन्तु पिता ने अपने सेवकों से कहा, ‘जल्दी से उत्तम वस्त्र निकाल लाओ और उन्हें इसे पहनाओ। इसके हाथ में अँगूठी और पैरों में चप्पल पहनाओ। 23कोई मोटा ताजा बछड़ा लाकर मारो और आऔ उसे खाकर हम आनन्द मनायें। 24क्योंकि मेरा यह बेटा जो मर गया था अब जैसे फिर जीवित हो गया है। यह खो गया था, पर अब यह मिल गया है।’ सो वे आनन्द मनाने लगे।



  1. क्या आपको इस खंड में कोई बात महत्वपूर्ण लगा?
  2. क्या आपको इस खंड में कोई बात महत्वपूर्ण लगा?
  3. आज का अध्याय परमेश्वर के बारे में हमें क्या बताता है? लोगों के बारे में? परमेश्वर के साथ हमारा जो रिश्ता है, उसके बारे में क्या बताता है?
  4. आप यह कैसे सोचते हैं कि यह प्रश्न उस प्रश्न से जुड़ा है, जो हमने पहले चर्चा किया था "कैसे हम लगातार परमेश्वर के साथ एक करीबी रिश्ता अनुभव कर सकते हैं?"

निष्कर्ष:

1 यूहन्ना 1:9

 9यदि हम अपने पापों को स्वीकार कर लेते हैं तो हमारे पापों को क्षमा करने के लिए परमेश्वर विश्वसनीय है और न्यायपूर्ण है और समुचित है। तथा वह सभी पापों से हमें शुद्ध करता है।



बयान का मतलब केवल यह है की आप परमेश्वर से कह रहे होगलतki आपने गलती की, और उसके लिए आप उनसे क्षमा माँग रहे हो. परमेश्वर वादा करते हैं की अगर हम अपने पापों को कबूल करेंगे तो वह हमें माफ़ करेंगे.

जब आप अपने पाप से दूर हो कर, परमेश्वर के पास लौटकर आओगे और र, आप उनकी प्रेम और क्षमा का अनुभव करेंगे जो क्रूस पर यीशु की मृत्यु के द्वारा प्रदान किया गया था। दोष, निंदा और सजा के बजाय, परमेश्वर के साथ आपकी सहभागिता (निकटता) बहाल हो जाएगी

आगे देखो

सबसे महत्वपूर्ण बात यह होगी कि हम जो सीखते हैं उसे कैसे लागू करते हैं, ताकी हम एक-दूसरे की सहायता करने कि मार्ग डूँड सकते हैं. कुछ प्रश्न जो हमारी मदद कर सकते हैं :

  1. आप किस प्रकार जीते हो किस प्रकार जीने वाले हो? परमेश्वर में, अपने आप के साथ और दूसरों के साथ?
  2. इस हफ्ते की चर्चा से वह क्या एक चीज़ है जो आप अपने जीवन में लागू करोगे? आप उस बदलाव को लाने के लिए क्या करेंगे?
  3. इस हफ्ते आपने जो कुछ सीखा है उसे आप किसके साथ साझा करेंगे? आप क्या साझा करेंगे?

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