2.

विकल्प

ज़िंदगी के अनुभव साझा करना

▶ एक साथ प्रार्थना करें: अनुभवों के लिए परमेश्वर को धन्यवाद कहें, परमेश्वर की मदद मांगे।

समीक्षा

▶ एक साथ प्रार्थना करें, हो सकता है कि आपको परमेश्वर के नए पहलुओं का पता चल जाए और परमेश्वर के साथ आपकी दोस्ती और गहरी हो जाए।

 

बाइबल का अध्ययन

उत्पत्ति 3

3 यहोवा द्वारा बनाए गए सभी जानवरों में सबसे अधिक चतुर साँप था। (वह स्त्री को धोखा देना चाहता था।) साँप ने कहा, “हे स्त्री क्या परमेश्वर ने सच—मुच तुमसे कहा है कि तुम बाग के किसी पेड़ से फल ना खाना?”

स्त्री ने कहा, “नहीं परमेश्वर ने यह नहीं कहा। हम बाग़ के पेड़ों से फल खा सकते हैं।लेकिन एक पेड़ है जिसके फल हम लोग नहीं खा सकते । परमेश्वर ने हम लोगों से कहा, ‘बाग के बीच के पेड़ के फल तुम नहीं खा सकते, तुम उसे छूना भी नहीं, नहीं तो मर जाओगे।’”

लेकिन साँप ने स्त्री से कहा, “तुम मरोगी नहीं।परमेश्वर जानता है कि यदि तुम लोग उस पेड़ से फल खाओगे तो अच्छे और बुरे के बारे में जान जाओगे और तब तुम परमेश्वर के समान हो जाओगे।”

स्त्री ने देखा कि पेड़ सुन्दर है। उसने देखा कि फल खाने के लिए अच्छा है और पेड़ उसे बुद्धिमान बनाएगा। तब स्त्री ने पेड़ से फल लिया और उसे खाया। उसका पति भी उसके साथ था इसलिए उसने कुछ फल उसे दिया और उसने उसे खाया।

तब पुरुष और स्त्री दोनों बदल गए। उनकी आँखें खुल गईं और उन्होंने वस्तुओं को भिन्न दृष्टि से देखा। उन्होंने देखा कि उनके कपड़े नहीं हैं, वे नंगे हैं। इसलिए उन्होंने कुछ अंजीर के पत्ते लेकर उन्हें जोड़ा और कपड़ो के स्थान पर अपने लिए पहना।

तब पुरुष और स्त्री ने दिन के ठण्डे समय में यहोवा परमेश्वर के आने की आवाज बाग में सुनी। वे बाग मे पेड़ों के बीच में छिप गए।यहोवा परमेश्वर ने पुकार कर पुरुष से पूछा, “तुम कहाँ हो?”

10 पुरुष ने कहा, “मैंने बाग में तेरे आने की आवाज सुनी और मैं डर गया। मैं नंगा था, इसलिए छिप गया।”

11 यहोवा परमेश्वर ने पुरुष से पूछा, “तुम्हें किसने बताया कि तुम नंगे हो? तुम किस कारण से शरमाए? क्या तुमने उस विशेष पेड़ का फल खाया जिसे मैंने तुम्हें न खाने की आज्ञा दी थी?”

12 पुरुष ने कहा, “तूने जो स्त्री मेरे लिए बनाई उसने उस पेड़ से मुझे फल दिया, और मैंने उसे खाया।”

13 तब यहोवा परमेश्वर ने स्त्री से कहा, “यह तुने क्या किया?” स्त्री ने कहा, “साँप ने मुझे धोखा दिया। उसने मुझे बेवकूफ बनाया और मैंने फल खा लिया।”

14 तब यहोवा परमेश्वर ने साँप से कहा,

“तुने यह बहुत बुरी बात की।
    इसलिए तुम्हारा बुरा होगा।
अन्य जानवरों की अपेक्षा तुम्हारा बहुत बुरा होगा।
    तुम अपने पेट के बल रेंगने को मजबूर होगे।
और धूल चाटने को विवश होगा
    जीवन के सभी दिनों में।
15 मैं तुम्हें और स्त्री को
    एक दूसरे का दुश्मन बनाऊँगा।
तुम्हारे बच्चे और इसके बच्चे
    आपस में दुश्मन होंगे।
तुम इसके बच्चे के पैर में डसोगे
    और वह तुम्हारा सिर कुचल देगी।”

16 तब यहोवा परमेश्वर ने स्त्री से कहा,

“मैं तेरी गर्भावस्था में तुझे बहुत दुःखी करूँगा
    और जब तू बच्चा जनेगी
तब तुझे बहुत पीड़ा होगी।
तेरी चाहत तेरे पति के लिए होगी
    किन्तु वह तुझ पर प्रभुता करेगा।”

17 तब यहोवा परमेश्वर ने मनुष्य से कहा,

“मैंने आज्ञा दी थी कि तुम विशेष पेड़ का फल न खाना।
    किन्तु तुमने अपनी पत्नी की बातें सुनीं और तुमने उस पेड़ का फल खाया।
इसलिए मैं तुम्हारे कारण इस भूमि को शाप देता हूँ
    अपने जीवन के पूरे काल तक उस भोजन के लिए जो धरती देती है।
    तुम्हें कठिन मेहनत करनी पड़ेगी।
18 तुम उन पेड़ पौधों को खाओगे जो खेतों में उगते हैं।
    किन्तु भूमि तुम्हारे लिए काँटे और खर—पतवार पैदा करेगी।
19 तुम अपने भोजन के लिए कठिन परिश्रम करोगे।
    तुम तब तक परिश्रम करोगे जब तक माथे पर पसीना ना आ जाए।
तुम तब तक कठिन मेहनत करोगे जब तक तुम्हारी मृत्यु न आ जाए।
    उस समय तुम दुबारा मिट्टी बन जाओगे।
जब मैंने तुमको बनाया था, तब तुम्हें मिट्टी से बनाया था
    और जब तुम मरोगे तब तुम उसी मिट्टी में पुनः मिल जाओगे।”

20 आदम ने अपनी पत्नी का नाम हब्बा रखा, क्योंकि सारे मनुष्यों की वह आदिमाता थी।

21 यहोवा परमेश्वर ने मनुष्य और उसकी पत्नी के लिए जानवरों के चमड़ों से पोशाक बनायी। तब यहोवा ने ये पोशाक उन्हें दी।

22 यहोवा परमेश्वर ने कहा, “देखो, पुरुष हमारे जैसा हो गया है। पुरुष अच्छाई और बुराई जानता है और अब पुरुष जीवन के पेड़ से भी फल ले सकता है। अगर पुरुष उस फल को खायेगा तो सदा ही जीवित रहेगा।”

23 तब यहोवा परमेश्वर ने पुरुष को अदन के बाग छोड़ने के लिए मजबूर किया। जिस मिट्टी से आदम बना था उस पृथ्वी पर आदम को कड़ी मेहनत करनी पड़ी।24 परमेश्वर ने आदम को बाग से बाहर निकाल दिया। तब परमेश्वर ने करूब (स्वर्गदूतों) को बाग के फाटक की रखवाली के लिए रखा। परमेश्वर ने वहाँ एक आग की तलवार भी रख दी। यह तलवार जीवन के पेड़ के रास्ते की रखवाली करती हुई चारों ओर चमकती थी।

और पढ़ें 

सामान्य प्रश्न: 

विशिष्ट प्रश्न (टिप्पणी देखें) 

 

पाठ को लागू करना

चुनौतियाँ

 

पाठ पर टिप्पणी:
 

इससे पहले कि हम इस अध्याय की त्रासदी के बारे में बात करें, चलिये कहानी के एक महत्वपूर्ण बिंदु पर एक नज़र डालते हैं। आदम और हव्वा ने बगीचे में परमेश्वर को घूमते हुए देखा। उन्हें तुरंत पता चल गया था कि कि वो परमेश्वर ही थे जो करीब आ रहे थे। यह असाधारण नहीं लगता कि परमेश्वर उनके साथ बगीचे में थे और वे आपस में बातचीत कर रहे थे। परमेश्वर और इंसान का रिश्ता सीधा और अद्भुत रहा होगा। जब आदम और हव्वा को अचानक साँप और भगवान के बीच चयन करना पड़ा, तो यह नाटकीय रूप से कैसे बदल गया। सांप ने उन्हें भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष से खाने की सलाह दी। लेकिन इसे खाने के बाद उन्हें इससे भी बड़ी समस्या का सामना करना था। वे जानते थे कि परमेश्वर उस शाम बगीचे में उनके पास आएंगे। उन्हें क्या करना चाहिए? पुरुष ने महिला को दोष देने का फैसला किया और महिला ने सांप को दोषी ठहराने का फैसला किया। वह व्यक्तिवाद और अहंकारवाद की शुरुआत थी। वो स्वयं को स्त्री और पुरुष की एक जोड़ी के बजाय अपने आप को अलग अलग व्यक्ति मानने लगे। उन्होंने एक दूसरे से दूरी बनाना शुरू कर दिया।

इसलिए उन्होंने पत्तों से कपड़े बनाये। यह बस वही दर्शाता था जो पहले से उनके मन में था। उन्होंने एक दूसरे से खुद को सुरक्षित रखने के लिए अपने बीच एक लकीर खींच ली और उन्होंने खुद को परमेश्वर से भी छिपा लिया। मनुष्य केवल अच्छाई जानता था और परमेश्वर और एक दूसरे के साथ एक अद्भुत रिश्ते में रहता था। निषिद्ध फल खाने से, उन्होंने बुराई और उसके परिणामों को भुगता। यथासमय पर मनुष्यों को बगीचे से बाहर निकाल दिया गया और इस तरह परमेश्वर की छत्रछाया से बाहर कर दिया गया। साँपों की सलाह पूरी तरह से गलत नहीं थी। वे तुरंत नहीं मरे, लेकिन वो जीवन के स्रोत यानि परमेश्वर से अलग हो गए, और इसलिए नश्वर हो गए। अफसोस की बात है कि उस समय से, न केवल मनुष्य, बल्कि संपूर्ण सृष्टि मृत्यु के प्रभाव में आ गई, इसलिए कुछ जानवरों को मनुष्यों को कपड़े प्रदान करने के लिए मरना पड़ा। परमेश्वर के प्रति मानव विरोध की उस एक कार्रवाई के कारण, सभी रिश्तों को तोड़ दिया गया। परमेश्वर के साथ रिश्ते को मार दिया गया, मनुष्यों के बीच रिश्तों को मार दिया गया और प्रकृति और जानवरों के प्रति मनुष्यों के रिश्तों को मार दिया गया।